देवघर जिला मुख्यालय से 15 किलोमिटर की दूरी पर स्थित त्रिकूट की पहचान युगों पुरानी है लेकिन त्रिकूट उस वक्त पूरे देश में चर्चा में आया ।

जब रामनवमी के दिन त्रिकूट पर्वत स्थित रोपवे हादसा हुआ। और तीनों सेनाओं और एनडीआरफ, स्थानीय लोगों और पुलिस प्रशासन के द्वारा 3 दिनों तक रेस्क्यू करके रोपवे में फंसे लोगों को सुरक्षित निकाला । आज हम बात करने वाले हैं दशानन रावण से जुड़ी त्रिकूट के बारे में स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, त्रिकूट पर्वत को रावण का हेलीपैड कहा जाता है। स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है की जब देवघर में भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग स्थापित हो गया। तब रावण लंका से बाबा बैद्यनाथ का दर्शन करने के लिए आते थे और वो अपने पुष्पक विमान से आते थे ।

रावण पुष्पक विमान को त्रिकूट पर्वत के ऊपरी हिस्से पर उतारते थे और वहां से फिर देवघर पूजा अर्चना करने पहुंचते थे। ऐसा माना जाता है की अभी के समय में कोई भी विमान रडार देखकर उतरता है। उस समय रडार का काम दीपक करता था। त्रिकूट पर्वत के ऊपर में एक दीपक की तरह आज भी मौजूद हैं जो हमेशा जलता रहता था और रावण अपना पुष्पक विमान उसी जलते दीपक को देखकर त्रिकूट पर्वत पर उतारते थे। जो आज भी मौजूद हैं और जब तीर्थ यात्री बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर में पूजा अर्चना कर लेते है उसके बाद भारी संख्या में श्रद्धालु त्रिकूट पर्वत पर रावण का हैलीपेड देखने जरूर जाता है।
रावण के हैलीपेड के अलावा त्रिकूट में
नारायण शिला विशाल चट्टानों पर चढ़कर नारायण शिला तक पहुंच सकता है और लोग अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए 12 इंच के अंतर से गुजरते हैं।

अंधेरी गुफा/रावण गुफा सुरक्षा कारणों से इस स्थान पर आम जनता का प्रवेश वर्जित है हाथी के आकार की चट्टान और शेष नाग के आकार का पत्थर भी लोगों के आकर्षण का केंद्र ।
प्राचीन झरना त्रिकूट पर्वत एक प्राचीन झरना भी निकला हैं जिसके माध्यम से सालों भर पानी निकलता रहता है और उसके उदगम स्थल के बारे अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया है।