झारखंड की आवाज

देवघर का "ब्राह्मण" और महाराष्ट्र का "आदिवासी" रावण को मानते हैं पूज्यनीय नहीं करते हैं रावण दहन -

देवघर का “ब्राह्मण” और महाराष्ट्र का “आदिवासी” रावण को मानते हैं पूज्यनीय नहीं करते हैं रावण दहन

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विजयादशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर पूरे भारत में रावण दहन की परंपरा प्रचलित है। पूरे भारत में रावण के पुतले की दहन की जाती है लेकिन, झारखंड के देवघर में यह परंपरा अलग है। यहां रावण के पुतले का दहन नहीं होता।

देवघर // बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर में रावण दहन नहीं होता है इसके पीछे की क्या वजह है आज हम जानेंगे। बैद्यनाथ की पावन धरती से लंकापति रावण का गहरा संबंध है। कहा जाता है कि देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है इसकी स्थापना से रावण की गहरी तपस्या और भगवान शिव के प्रति उनकी असीम भक्ति की कहानी जुड़ी हुई है। रावण से जुड़े होने के कारण इसे रावणेश्वर बाबा बैद्यनाथ और बैजू से जुड़े होने के कारण बाबा बैजूनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है।

देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के तीर्थ पुरोहित दुर्लभ मिश्र की प्रतिक्रिया

इस विषय को लेकर देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के तीर्थ पुरोहित दुर्लभ मिश्र से इस विषय में पूछने पर उन्होंने बताया कि रावण से बड़ा ना कोई बड़ा पंडित हुआ है ना होगा । ना भूतों ना भविष्यति। उन्होंने आगे कहा कि लंकापति रावण ने कड़ी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे आत्मलिंग (शिवलिंग) लंका ले जाने का वरदान मांगा। लेकिन, एक शर्त थी कि अगर रावण ने रास्ते में कहीं भी शिवलिंग को रखा तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा। शिवलिंग लेकर जाते समय रावण को लघु शंका लगी ।

तभी रावण को एक चरवाहा नजर आया जिसका नाम बैजू ग्वाला था । बैजू का रूप धारण किए भगवान विष्णु को रावण ने शिवलिंग को कुछ देर के लिए पकड़ने का अनुरोध किया। बैजू ने काफी देर तक शिवलिंग को रखा लेकिन रावण लघुशंका करके आने में बहुत देर कर दी तो बैजू ने शिवलिंग को जमीन में रख दिया , जिससे वह उसी स्थान पर स्थापित हो गया।

रावण को राक्षसराज की बजाय भगवान शिव का अनन्य भक्त मानते हैं

रावण को मालूम था कि राम के हाथों उसकी मृत्यु होनी है इसलिए सीता का हरण किया पंडितों का मानना है कि रावण बहुत बड़े पंडित थे और उसे मालूम था कि उसकी मृत्यु राम के हाथों लिखी है इसलिए उन्होंने सीता का हरण किया। आगे कहते हैं कि राक्षस होने के बाद भी रावण ने सीता के साथ कुछ भी गलत नहीं किया इसलिए रावण को हमलोग पूजनीय मानते हैं। आज के दिन राक्षसी गुण को त्यागने का दिन है असुर शक्ति को नष्ट करने का दिन है। इसलिए आज के दिन पूरे भारत में रावण दहन होता है। लेकिन देवघर में रावण को राक्षसराज की बजाय भगवान शिव का अनन्य भक्त मानते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। उनके द्वारा की गई तपस्या और शिव की उपासना का वर्णन पुराणों में मिलता है। इसलिए विजयादशमी के दिन जब पूरे देश में रावण दहन होता है तब देवघर में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता।

कहां कहां नहीं होती है रावण दहन

झारखंड के देवघर के अलावा उत्तर प्रदेश के बिसरख , मध्य प्रदेश के मंदसौर और महाराष्ट्र के अमरावती के गढ़चिरौली में कुछ जगहों पर भी विजयादशमी के दिन रावण दहन नहीं किया जाता । खासकर, गढ़चिरौली में आदिवासी समुदाय के लोग रावण को अपने कुल देवता के रूप में पूजते हैं।

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