झारखंड की आवाज

पेयजल संकट से जूझ रहा आदिम जनजाति परिवार -

पेयजल संकट से जूझ रहा आदिम जनजाति परिवार

दुमका कहा जाता है कि जल ही जीवन है क्योंकि जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।

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इस कहावत को चरितार्थ कर रहे है दुमका जिला के शिकारीपाड़ा थाना के कौड़ीगढ़ गांव के बनिया पसार के लोग। यहां के लोगों की दिनचर्या पेयजल की तलाश से शुरू होती है और पानी घर लाकर समाप्त हो जाती है। लगभग 30 घरों के आदिम जनजाति पहाड़िया टोला के लोगों को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो पा रहा है। ग्रामीण टोला से एक किलोमीटर दूर प्राकृतिक जलश्रोत से पानी लाते है। इस जलश्रोत में पशु और इंसान एक साथ अपनी प्यास बुझाते हैं। लेकिन गर्मी के समय में जब यह जलस्रोत भी सुख जाता है तो ग्रामीण 3 किलोमीटर दूर कर्माचुआं गांव जाकर पानी लाना पड़ता है।

गोद में बच्चा माथे पर पानी की गगरी पथरीले रास्ते

गोद में बच्चा माथे पर पानी की गगरी लेकर पथरीले रास्ते तय कर महिलाएं पानी लाती है। ग्रामीणों की समस्या से शासन और प्रशासन वाकिफ है। तभी तो लगभग 2 वर्ष पूर्व कल्याण विभाग द्वारा गांव में पेयजल संकट के समाधान की दिशा में पहल करते हुए एक बोरिंग कर टंकी बैठाया गया था। काम का जिम्मा पेयजल एवं स्वच्छता विभाग को मिला था। टंकी लगने के बाद लोगों को लगा कि समस्या से निजात मिली। लेकिन महज चंद महीनों में ही टंकी से पानी मिलना बंद हो गयाग्रामीणों का कहना है कि टंकी से जब पानी मिलना बंद हुआ तो इसकी जानकारी विभागीय अधिकारी को दी गई लेकिन समाधान नहीं हुआ।

जल्द होगा समस्या का समाधान : पेयजल विभाग

इस बाबत जब पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के कनीय अभियंता सोनू कुमार से मोबाइल पर बात की गई तो उन्होंने मामला संज्ञान में होने की बात कही और समाधान का भरोसा दिया।अभी तो गर्मी का आगाज भी नहीं हुआ है तब पेयजल की यह स्थिति है। अगर विभाग समस्या को लेकर गंभीर नहीं हुई तो आने वाले समय में लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ेगा।

इसलिए जरूरत है समय रहते समस्या के समाधान की ताकि लोगों को शुद्ध पेयजल मिल सके।

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