
देवघर सावन का पावन महीना चल रहा है और सावन माह में शिव जी की चर्चा चारों और होती है। आज हम बात करेंगे शिव और रावण से जुड़ी तपोवन की कहानी के बारे में तपोवन को बालानंद ब्रह्मचारी की तपो भूमि नागाओं (साधुओं) के लिए ध्यान स्थल और रावण की तपो भूमि के लिए जाना जाता है । तपोवन की दूरी देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर से 10 किलोमिटर है। यहां के बारे में कहा जाता है की रावण ने जब शिवलिंग को देवघर में रख दिया और वहां से वो नही उठा पाए तो कैलाश पर्वत के बाद पुनः अपनी तपस्या से शिव को प्रसन्न करने के लिए तपोवन पहाड़ में तपस्या करना शूरू किया । लंबी तपस्या के बाद राम के परम भक्त हनुमान ने रावण की तपस्या को भंग करने का काम किया । हनुमान ने पहाड़ को चीर कर निकले और रावण पर अपने गदे के प्रहार से रावण की तपस्या को भंग कराया। जो आज भी प्रमाण के रुप में एक चट्टान मौजूद हैं जिसके दर्शन के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु तपोवन पहुंचते हैं और कठिन पहाड़ी रास्तों से होकर हनुमान जी का वो शिलापट देखते हैं।

यह काफी आकर्षण, दरार वाली चट्टान है, जिसकी आंतरिक सतह में कथित तौर पर भगवान हनुमान का चित्र देखा जा सकता है। उसके ठीक निचे एक गुफा भी है। लोगों का मानना है की हनुमान जी चट्टान को चीर निकले और रावण गुफा में अपना तपस्या कर रहा था। हनुमान ने गदे से प्रहार करके रावण की तपस्या को भंग कराया। जो चट्टान आज भी मौजूद हैं।
तपोवन को रावण की तपस्या स्थली भी कहा जाता है
यह विशेष रूप से अद्भुत है क्योंकि दरार में रंग और ब्रश का इस्तेमाल करना चित्रकारी करना एकदम असंभव है। लेकिन उसमें हनुमान जी की प्रतिमा बनी हुई है। और मनोकामना हनुमान के नाम से भी इसे जाना जाता है। इस प्रकार से तपोवन को रावण की तपस्या स्थली भी कहा जाता है। और भारी संख्या में श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ के दर्शन के बाद तपोवन भी पहुंचते हैं।
तपोवन में क्या क्या है
इसके अलावा तपोनाथ महादेव, जो भगवान शिव का मंदिर है, यहां का एक विशेष धार्मिक स्थल है। पहाड़ी के नीचे एक छोटा कुंड (जलकुंड) है और ऐसा माना जाता है कि देवी सीता इसमें स्नान करती थीं। इस प्रकार, इसे स्थानीय लोगों द्वारा सूक्त कुंड या सीता कुंड नाम दिया गया है।तपोवन शब्द का अर्थ है ध्यान का वन और एक समय में, यह नागाओं (साधुओं) के लिए ध्यान स्थल (तपोभूमि) था। इसीलिए इसका नाम तपोवन रखा गया है।